दैवयोग: एक अनपेक्षित प्रेम कहानी | Devyog Ek Prem Kahani

उज्जैन में दैवयोग से राजकुमारी तेजस्विनी और वीर सोमदत्त का मिलन हुआ, जहाँ मंदिर में हुई अनजाने सगाई ने प्रेम और वीरता की कहानी को विवाह में बदल दिया। यह एक प्रेरक हिंदी लघु कथा है

Devyog Ek Prem Kahani
दैवयोग: एक अनपेक्षित प्रेम कहानी Devyog Ek Prem Kahani

उज्जैन शहर में राजा विक्रमादित्य की एक बहुत सुंदर बेटी थी, जिसका नाम तेजस्विनी था। राजा ने अपनी बेटी के लिए योग्य वर खोजने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई नहीं मिला। एक दिन, जब राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ महल की छत पर घूम रही थी, तो उसने एक राहगीर को आते देखा।

राहगीर के सुंदर चेहरे से वह बहुत प्रभावित हुई और उसकी ओर आकर्षित हो गई। अपनी सहेलियों के माध्यम से उसने अपने दिल की बात बताई, और उन्होंने तुरंत उस राहगीर से संपर्क किया। लेकिन राहगीर के मन में गहरा डर था, इसलिए वह पहले तो तैयार नहीं हुआ, लेकिन बाद में मान गया। बात हुई कि शाम को दोनों मंदिर में मिलेंगे। लेकिन शाम को आने से पहले ही राहगीर डर कर भाग गया।

इसी बीच, सोमदत्त नाम का एक सामंत राजा दुश्मनों के हमले से परेशान होकर उज्जैन के राजा से मदद मांगने जा रहा था। रास्ते में शाम हो गई, इसलिए उसने रात को राजा के पास न जाकर अगले दिन सुबह जाने का फैसला किया। इसलिए उसने उसी मंदिर में शरण ली।

दैवयोग कहानी

दूसरी ओर, तेजस्विनी उस राहगीर का इंतजार करते हुए मंदिर पहुंची। वहां सोमदत्त को देखकर, उसने उसे ही वह राहगीर समझ लिया। सोमदत्त भी बात समझ गया, और बिना कुछ कहे, उसने भगवान को साक्षी मानकर वहीं उनकी सगाई कर दी। तेजस्विनी महल लौट आई, और सोमदत्त ने रात मंदिर में बिताई।

सुबह सोमदत्त उज्जैन के राजा के महल में पहुंचा और अपना परिचय देकर मदद की गुहार लगाई। विक्रमादित्य सोमदत्त के रूप और व्यवहार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने न केवल मदद की, बल्कि अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव भी रखा। सोमदत्त ने कहा कि युद्ध जीतकर लौटने के बाद वह निश्चित रूप से यह प्रस्ताव स्वीकार करेंगे।

सोमदत्त खुशी-खुशी अपने राज्य लौट गया, लेकिन तेजस्विनी के मन में खुशी की जगह गहरी चिंता समा गई। किसी से कुछ न कह पाने के कारण वह दिन गिनने लगी। देखते ही देखते कुछ दिन बीत गए। एक दिन खबर आई कि सोमदत्त ने दुश्मन सेना को हराकर विजयी होकर उज्जैन की ओर आ रहा है।

राजमहल के सामने आकर जब सोमदत्त रुका, तो राजकुमारी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह अपनी सहेलियों के साथ सोमदत्त का स्वागत करने के लिए आगे आई। बातों-बातों में पता चला कि उनकी शादी की शुरुआती रस्में पहले ही हो चुकी हैं। इसके बाद धूमधाम से उनकी शादी हो गई।

Moral ‘दैवयोग’ कहानी से सीख:

  • भाग्य का खेल: कभी-कभी जीवन में ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो हमें अविश्वसनीय लगती हैं। तेजस्विनी और सोमदत्त का मिलना और शादी होना, भाग्य का ही एक खेल था।
  • सच्चा प्रेम: तेजस्विनी और सोमदत्त ने एक-दूसरे को बिना जाने ही स्वीकार कर लिया। यह सच्चे प्रेम की निशानी है।
  • विश्वास: तेजस्विनी ने सोमदत्त पर विश्वास किया और उसका इंतजार किया। यह विश्वास ही उनकी शादी का आधार बना।

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FAQ

Q.1:राजकुमारी तेजस्विनी किससे प्रभावित हुई?

Ans: राजकुमारी तेजस्विनी एक राहगीर के सुंदर चेहरे से प्रभावित हुई।

Q.2: सोमदत्त उज्जैन क्यों आया था?

Ans: सोमदत्त दुश्मनों के हमले से परेशान होकर उज्जैन के राजा से मदद मांगने आया था।

Q.3: तेजस्विनी और सोमदत्त की सगाई कैसे हुई?

Ans: मंदिर में तेजस्विनी ने सोमदत्त को राहगीर समझ लिया और सोमदत्त ने भी स्थिति समझकर भगवान को साक्षी मानकर सगाई कर ली।

Q.4: राजा विक्रमादित्य ने सोमदत्त को क्या प्रस्ताव दिया?

Ans: राजा विक्रमादित्य ने सोमदत्त को अपनी बेटी से शादी का प्रस्ताव दिया।

Q.5: सोमदत्त ने राजकुमारी के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए क्या शर्त रखी?

Ans: सोमदत्त ने कहा कि युद्ध जीतकर लौटने के बाद वह निश्चित रूप से यह प्रस्ताव स्वीकार करेंगे।

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